उज्जाई प्राणायाम

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6/29/20231 min read

person doing yoga exercises
person doing yoga exercises

उज्जाई प्राणायाम

यह बहुत महत्वपूर्ण प्राणायाम है। यह एकमात्र ऐसा प्राणायाम है। इसको कभी भी, खाने से पहले, खाने के बाद, उठते, बैठते, सोते... किया जा सकता है। उज्जाई का अर्थ होता है "विजयी" अर्थात विजय प्राप्त करना।

यह खेचरी मुद्रा के साथ अभ्यास करने पर समस्त इंद्रियों को वश में कर, योग के उच्च लेवल को प्राप्त करने में मदद करता है।

विधि

ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं। शरीर को शिथिल और अपनी स्वास को मंद व लयपूर्ण करने का प्रयास करें।

जब आपका स्वास मंद और लय पूर्ण हो जाए तो, अपने श्वास की सजगता को गले पर लेकर आए और ऐसा महसूस करें कि आप श्वास नाक से नहीं गले के छोटे से छिद्र से ले रहे है।

उसके बाद गले को संकुचित करें और छोटे बच्चे के खर्राटे जैसी आवाज निकालते हुए श्वशन करे। यह प्रक्रिया बहुत धीमी होनी चाहिए।

अभ्यास सीखने में समय लग सकता है।

अगर आप अभ्यासी है तो, आपको गले के संकुचन के साथ-साथ पेट के संकुचन का भी एहसास होगा। परन्तु यह आपको करना नहीं है, यह स्वत: ही होगा।

स्वास और प्रश्वास दोनों लंबे, गहरे और नियंत्रित होने चाहिए।

गले में स्वशन द्वारा उत्पन्न ध्वनि पर एकाग्रता रखते हुए योगिक(deepbrithing) स्वशन करें। जब इस अभ्यास में दक्षता प्राप्त हो जाए। उसके बाद अपनी जीवा को मोड़कर उज्जाई का अभ्यास करना चाहिए, इसको खेचरी मुद्रा भी बोलते है।

जब इसमें भी दक्षता आ जाए तो उसके बाद तीन बंदों (मूलबंध, उड्डीयान और जालंधर बंध) के साथ उज्जाई प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यह बहुत ही उच्च लेवल का अभ्यास है। सावधानी पूर्वक या किसी योग्य योग गुरु के संपर्क में करना चाहिए।

लाभ

उज्जाई प्राणायाम शरीर में शांति और विश्रांति प्रदान करने वाला प्राणायाम है।

यह शरीर में उष्णता(heat) बढ़ाता है।

योग उपचार में इसका प्रयोग तंत्रिका तंत्र और मन को शांत करने के लिए किया जाता है।

आत्मीय स्तर पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

यह अनिद्रा को दूर करता है, सोने के ठीक पहले अगर इसका अभ्यास किया जाए तो नींद अच्छी आती है।

कुंभक या बंधो के बिना अभ्यास हृदय की गति को मंद करता है।

उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए लाभदायक है।

यह शरीर के सप्त धातुओं की व्याधियों को दूर करता है।

सावधानिया

अंतर्मुखी, उदास, असहज, परेशान, चिंता ग्रस्त... व्यक्तियों को उज्जाई प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

हृदय के रोगियों को उज्जाई प्राणायाम या किसी भी प्राणायाम के साथ कुंभक और बंधो का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

सामान्य अभ्यास में निपुणता प्राप्त हो जाने के बाद ही कुंभक और खेचरी मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।

कुछ लोग उज्जाई का अभ्यास करते समय अपने चेहरे पर अनावश्यक तनाव ले आते है। ध्यान रहे संकुचन स्वाभाविक और सहज होना चाहिए वह भी कंठ का, बलपूर्वक नहीं, चेहरे को तनाव रहित रखना चाहिए।

कंठ का संकुचन अनावश्यक नहीं होना चाहिए। कंठ का संकुचन हल्का और सहज होना चाहिए। जो पूरे अभ्यास में समान बना रहे, कभी कम कभी ज्यादा नहीं होना चाहिए।

कैलाश बाबू योग

धन्यवाद